भगवा सरकार में नारी और नदी के साथ भेदभाव की सबसे ताजी कहानी
गिरगीट की तरह रंग बदलती जिला पंचायत और उसकी जलाभिषेक परियोजना
बैतूल, रामकिशोर पंवार: गिरगीट की तरह रंग बदलती जिला पंचायत और उसकी तथाकथित जलाभिषेक परियोजानाओं के चलते बैतूल जिले में जल ससंद मजाक बन कर रह गई हैं। पहले बैतूल जिला पंचायत के बैनर तले मुलताई जनपद एवं विकासखण्ड की ग्राम पंचायत गौला ग्राम में ताप्ती के पुनर्जीवन परियोजना के नाम पर एक कार्यक्रम हुआ जिसमें बैतूल जिला कलैक्टर एवं जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमति लता राजू ने भाग लिया। ताप्ती को पुनर्जीवन देने के लिए 292.121 लाख रूपए की एक अति महत्वाकांक्षी परियोजना बनाई गई। सूर्यपुत्री मां ताप्ती नदी के पुनर्जीवन को लेकर आयोजित उस कार्यक्रम को बमुश्कील साल भर भी नहीं हुआ कि उक्त परियोजना अचानक ठंडे बस्ते में जा पहुंची। उक्त परियोजना की छाती पर दुसरी मां चन्द्रपुत्री नदी पूर्णा के पुनर्जीवन की 451.506 लाख रूपए से संपादित होनी परियोजना की तथाकथित आत्मकथा लिखनी शुरू कर दी गई। इसे महज संयोग ही माना जाए कि बैतूल जिले में एक छोर मुलताई एवं दुसरे छोर भैसदेही के नगरीय क्षेत्रो के दो – अलग – अलग तालाबों से निकलने वाली दो पुण्य सलिला ताप्ती एवं पूर्णा का बहाव क्षेत्र सबसे अधिक बैतूल जिले में ही हैं। अपनी जन्मस्थली से सीमावर्ती जिले की सीमा तक इन नदियों को पुनर्जीवन देने के लिए दो अलग – अलग महत्वाकांक्षी परियोजना का दो अलग – अलग जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी की मौजूदगी में श्री गणेश तो हुआ लेकिन ताप्ती परियोजना दो कदम भी चल नहीं पाई और रास्ते में ही दम तोड़ गई। इस बार जिला प्रभारी मंत्री सरताज सिंह की 2011-12 में जल अभिषेक अभियान के शुभारम्भ किया गया। ”समेकित माईक्रोप्रोजेक्टÓÓ, परियोजना अधिकारी, आर.जी.एम.डब्ल्यू.एम., पार्टनर एन.जी.ओ. की साझा पहल पर जल अभिषेक अभियान वर्ष 2010-11 के तहत ”जनसहभागिता को प्रोत्साहित करनेÓÓ के लिए जहां वातावरण निर्माण, ग्रामीणों में पानी की कमी और इसके संरक्षण के प्रति अहसास जागृत करने तथा व सामाजिक जुड़ाव के कार्यकलाप जैसे पीढ़ी जल संवाद, जल यात्रायें, जल गोष्ठी, ”चिन्हित गतिविधियों के सघन कार्यान्वयनÓÓ नदी पुनर्जीवन परियोजना अन्तर्गत प्रगति, भागीरथ कृषकों द्वारा निजी खेतों पर सिंचाई तालाबों का निर्माण और पुरानी जल संग्रहण संरचनाओं के सुधार / जीर्णोद्धार के क्रियान्वित कार्यों को शामिल किया गया। विगत वर्ष राशि रू. 464.51 लाख की लागत से 942 पुरानी जल संग्रहण संरचानाओं की मरम्मत अथवा पुनरोद्धार किया गया है। राशि रू. 451.506 लाख से पूर्णा नदी पुनर्जीवन हेतु चयनित कार्य क्रियान्वित किये गये है। बैतूल जिले के कमाऊपूत अधिकारियों को ताप्ती के लिए स्वीकृत राशि रू. 292.121 लाख रूपए की राशी से पूर्णा के लिए स्वीकृत 451.506 लाख रूपए की परियोजना में जस्त दुगनी लागत में कमाई का ज्यादा सुअवसर मिलने के चलते उन्होने ताप्ती को भगवान भरोसे छोड़ कर वे पूर्णा गाथा लिखने में जूट गए। बैतूल जिले में जलाभिषेक अभियान के लिए 2082.22 लाख रूपए की राशी का बजट अनुमोदन स्वीकृत होकर आने के बाद जल अभिषेक अभियान के अन्तर्गत उक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य समस्त ग्रामों में जल संरक्षण एवं संवर्धन हेतु कार्य संपादित किया जाना हैं। वैसे तो जिले में 3189.358 लाख रूपए की लागत से जिले में जल अभिषेक अभियान के तहत विभिन्न कार्य कराये जा चुके है। जल अभिषेक अभियान 2011-12 के सफल आयोजन हेतु एम.एस.पावर-पाईन्ट प्रस्तुति के माध्यम से शासन के समस्त निर्देशों, चयनित गतिविधियों एवं आगामी प्रस्तावित कार्ययोजना का प्रस्तुतिकरण किया गया। पार्टनर एन.जी. ओ. द्वारा चयनित क्षेत्र मे ली जाने वाली गतिविधियों एवं विगत वर्ष में क्रियान्वित गतिविधियों पर बैठक में जानकारी दी गई एवं वर्ष भर जल अभिषेक अभियान का कार्यान्वयन जारी रखने सर्व सम्बंधित को निर्देश जारी दिये गये। बीती 22 अप्रेल 2011 को भैंसदेही जनपद पंचायत के ग्राम रामघाटी में जलाभिषेक अभियान के तहत जिला स्तरीय कार्यक्रम ”जिला जल संसदÓÓ का श्री सरताजसिंह, वन मंर्ती, मध्यप्रदेश शासन एवं प्रभारी मंत्री, जिला बैतूल के मुख्य आतिथ्य में आयोजन किया गया। इस अवसर पर श्रीमती ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे क्षेत्रीय सांसद द्वारा ”जिला जल संसदÓÓ की अध्यक्षता की गई। ग्राम रामघाटी पूर्णा नदी पुनर्जीवन परियोजना के जलग्रहण क्षेत्र (केचमेन्ट एरिया) स्थित है। ग्राम रामघाटी एवं ग्राम गारपठार में लागत 27.41 लाख की लागत के 6 नवीन लघु तालाब का विधिवत भूमि पूजन एवं जल संसाधन विभाग द्वारा लागत 35 लाख से निर्मित रामघाटी स्टापडेम का लोकापर्ण किया गया। कार्यपालन यंत्री, जल संसाधन द्वारा पूर्णा नदी जलग्रहण क्षेत्र में स्थित ग्राम कोढिय़ा में लागत 519.27 लाख से मध्यम तालाब स्वीकृति किया जा चुका है। ”समेकित माईक्रोप्रोजेक्ट के तहत जनपद पंचायत भैसदेही में पूर्णा नदी पुनर्जीवन परियोजना में 3 क्लस्टर का चयन किया जाकर 64.01 करोड़ की कार्ययोजना तैयार की गई है। उक्त कार्ययोजना का क्रियान्वयन 31 मार्च 2013 तक पूर्ण किया जाना है। जहां एक ओर यह तर्क दिया जा रहा हैं कि नदी पुनर्जीवन हेतु पूर्णा नदी को सिर्फ इसलिए चयनीत किया गया क्योकि नदी का जलग्रहण क्षेत्र की जल रिसन क्षमता अधिक है, नदी में जहां पहले वर्ष भर पानी रहता था, अब वहां नदी नवम्बर माह में ही सूख जाती है, पूर्णा आदिवासी विकासखण्ड के भैसदेही नगर सहित 52 ग्रामों की जीवनदायिनी है एवं चयनित क्षेत्र के ग्रामीण जनसहभागिता के लिये सहर्ष तैयार है। पूर्णा नदी जिले के भैसदेही के पोखरनी ग्राम में स्थित काशी तालाब से प्रारम्भ होकर ग्राम चांगदेव जिला जलगांव महाराष्ट्र में ताप्ती में समाहित हो जाती है। नदी की कुल लम्बाई 170 कि.मी. है। नदी का जलग्रहण क्षेत्र 7,50,000 हेक्टेयर है। जिले में नदी की कुल लंबाई 89.602 कि.मी. एवं कुल जलग्रहण क्षेत्र 36242.349 हेक्टेयर है जिसमे से उपचार हेतु चयनित नदी की 45.855 कि.मी. लंबाई अन्तर्गत 13 ग्राम पंचायतों के 28 ग्राम का कुल 17840ण्165 हेक्टेयर क्षेत्रफल उपचार हेतु चयनित किया गया है।पूर्णा नदी पुनर्जीवन परियोजना के तहत 28 ग्रामों की 35007 जल संख्या सीधे तोर पर लाभान्वित होगी साथ ही 3746 लघु एवं सीमान्त कृषको को अपनी फसल की सिंचाई हेतु र्प्यापत जल उपलब्ध हो सकेगा। सम्पूर्ण परियोजना की लागत 64.01 करोड़ है जिसमें से 36.00 करोड़ जिला स्तर पर संचालित विभिन्न विभागीय योजनाओं के माध्यम से जुटाया जायेगा शेष राशि 28 करोड़ की स्वीकृति राज्य शासन से अपेक्षित है। कार्ययोजना क्रियान्वयन में ग्रामीण विकास विभाग, जल संसाधन विभाग, कृषि विभाग, अजाक विभाग, आई.टी.डी.पी., बी.आर.जी.एफ., जनभागीदारी, आर.जी.एम.वाटरषेड, पी.एच.ई., सांसद/ विधायक निधि आदि मद से कार्य किया जाना प्रस्तावित है। वही दुसरी ओर ताप्ती नदी के बारे में प्रस्तावित परियोजना के बंद होने की कहानी कुछ हजम नहीं हो रही हैं। मुलताई से लेकर सूरत तक ताप्ती नदी 750 किलोमीटर बहती हैं जिसमें सबसे अधिक जल प्रवाह क्षेत्र बैतूल जिले में ही हैं। लगभग 250 किलोमीटर के क्षेत्र में 25 स्टाप डेम बनने थे लेकिन ताप्ती नदी में नदी का बहाव तेज होने के कारण घटिया निमार्ण कार्य की पोल खुल जाती तथा नदी में लगभग ढाई सौ से अधिक ऐसे प्राकृतिक जल संग्रहण क्षेत्र हैं जहां पर बारह मास पानी भरपूर रहता हैं। जिले में मुलताई में ताप्ती में जल का प्रवाह भले ही ऊपरी सतह पर कम हो जाता हैं लेकिन नदी अंदर ही अंदर बहती रहती हैं।
पूर्णा नदी पुनर्जीवन परियोजना में कन्टूर टेऊन्च, कन्टूर बोल्डरवाल, गली प्लग, मेढ़ बंधान, खेत तालाब, बलराम तालाब, स्टाप डेम, तालाब, परकोलेषन टैंक, बोरी बंधान, नाला बंधान, कूप डाईक, रिचार्ज साफ्ट, पुरानी संरचनाओं का सुधार आदि जल सरंक्षण संरचनाओं को प्रमुखता से लिया गया है। समेकित माईक्रो प्रोजेक्ट के तहत वर्ष 2010-11 की स्थिति तक 451.38 लाख के कार्य क्रियान्वित किये गये हैं। पूर्णा नदी का पुर्नजीवित करने हेतु कार्य योजना तथा कार्यों की प्रगति तो आने वाले कल में दिखाई देगी लेकिन ताप्ती के साथ प्रदेश सरकार के साथ – साथ जिला सरकार की सोच ने आज फिर सवाल उठा कर रचा दिए हैं कि क्या प्रदेश की भाजपा सरकार ताप्ती से बैर रखती हैं। सवाल यह उठता हैं कि पूर्णा नदी पुनर्जीवन हेतु तन-मन-धन से समर्पण की बाते कहने वाले जनप्रतिनिधि ताप्ती की लागतार उपेक्षा के लिए आखिर क्यों गुंगे और बहरे बने हुए हैं। जिले में पूर्णा नदी की कुल लंबाई 89.602 कि.मी. एवं कुल जलग्रहण क्षेत्र 36242.349 हेक्टेयर है जिसमे से उपचार हेतु चयनित नदी की 45. 855 कि.मी. लंबाई अन्तर्गत 13 ग्राम पंचायतों के 28 ग्राम का कुल 17840.165 हेक्टेयर क्षेत्रफल उपचार हेतु चयनित किया गया है। पूर्णा नदी पुनर्जीवन परियोजना के तहत 28 ग्रामों की 35007 जल संख्या सीधे तोर पर लाभान्वित होगी साथ ही 3746 लघु एवं सीमान्त कृषको को अपनी फसल की सिंचाई हेतु र्प्यापत जल उपलब्ध हो सकेगा। सम्पूर्ण परियोजना की लागत 64.01 करोड़ है जिसमें से 36.00 करोड़ जिला स्तर पर संचालित विभिन्न विभागीय योजनाओं के माध्यम से जुटाया जायेगा शेष राशि 28 करोड़ की स्वीकृति राज्य शासन से अपेक्षित है। कार्ययोजना क्रियान्वयन में ग्रामीण विकास विभाग, जल संसाधन विभाग, कृषि विभाग, अजाक विभाग, आई.टी.डी.पी., बी.आर.जी.एफ., जनभागीदारी, आर.जी.एम.वाटरषेड, पी.एच.ई., सांसद/ विधायक निधि आदि मद से कार्य किया जाना प्रस्तावित है। पूर्णा नदी पुनर्जीवन परियोजना में कन्टूर टेऊन्च, कन्टूर बोल्डरवाल, गली प्लग, मेढ़ बंधान, खेत तालाब, बलराम तालाब, स्टाप डेम, तालाब, परकोलेषन टैंक, बोरी बंधान, नाला बंधान, कूप डाईक, रिचार्ज साफ्ट, पुरानी संरचनाओं का सुधार आदि जल सरंक्षण संरचनाओं को प्रमुखता से लिया गया है। ताप्ती नदी पर पहले छोटे रपटे डेम , स्टाप डेम एवं अन्य माध्यमो से जल संग्रहण की लम्बी चौड़ी बाते कहीं गई थी। उस समय तो ऐसे प्रचार किया गया था कि भागीरथ तो गंगा को अपने कुल का उद्धार के लिए लाए थे लेकिन अब लग रहा हैं कि कलयुगी भागीरथा को आदिगंगा मां सूर्यपुत्री के नाम पर स्वीकृत 292.121 लाख रूपए की राशी में स्वंय के उद्धार की कोई गुंजाइश नहीं दिखाई दी तो उन्होने इस आदिगंगा की ओर दुबारा मुड़ कर भी नहीं देखा। इन सबसे अलग विधि का विधान कहे या फिर कोई चमत्कार मई माह की इस तपती धुप में भी ताप्ती आज भी कल कल कर बहती हुई चली जा रही हैं। जिस गंगा को पूरे साल का बोझ पाप को लेकर साल में एक बार मां नर्मदा के पास आना पड़ता हैं आज वहीं नर्मदा भी गंगा के बोझ के तले दबती चल जा रही हैं। आज गंगा की तरह नर्मदा भी मैली हो गई हैं लेकिन ताप्ती न तो किसी के पास जाती हैं और न किसी के पाप का बोझ ढोती हैं। गंगा में लोगो को मुक्ति मिलती है या भी नहीं यह तो राम ही जाने लेकिन ताप्ती में तीन दिन आज भी मानव अस्थियां गल जाती हैं। युगो से ताप्ती नदी में गंगा की तरह स्नान और नर्मदा के दर्शन के समकक्ष पुण्य उसके नाम मात्र के स्मरण से ही मिलता चला आ रहा हैं। ऐसे में प्रदेश की भाजपा सरकार नदी और नारी में भेदभाव करके अपनी ओझी एवं घटिया मानसिकता का परिचय दे रही हैं।
बैतूल , रामकिशोर पंवार: राजकपूर ने अपने बेटे राजीव कपूर को प्रमोट करने के लिए एक फिल्म बनाई थी राम मेरी गंगा मैली फिल्म तो चली नहीं पर उसके बोल्ड सीन को देख कर लोग फिल्म देखने आ जाते थे। फिल्म की तरह बैतूल में एक गंगा के मैली होने की खबरे कई बार लोगो को बताई गई लेकिन लोग कान से बहरे और आंख से अंधे हो गए। जब बैतूल नगर पालिका अध्यक्ष डां. राजेन्द्र देशमुख होटल जायका में अपनी एक साल की उपलब्धि गिना रहे थे तब बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति की ओर से माचना नदी के मैली होने की बाते तथ्यों के आधार पर रखी गई जिस पर पालिका अध्यक्ष का दो टुक जवाब था कि यह काम हमारा नहीं है..? आज उसी माचना नदी के मैली होने को लेकर बैतूल के जनप्रतिनिधियों के हवाले से हाय: तौबा मचाई जा रही हैं। बासी खबरो को अपने पाठको को परोसने का नदियों को लेकर चिंताग्रसित राजस्थान पत्रिका के प्रकाशक एवं संपादक गुलाब कोठारी के पेड संवाददाताओं ने बीड़ा उठा लिया हैं। जब नदी को प्रदुषित किया जा रहा था उस समय पालिका अध्यक्ष की चाटुकारिता में लगी पत्रिका की पूरी टीम माचना को लेकर लीड न्यूज बना कर पाठको को परोस रही हैं आखिर क्यों…? आमला विकासखंड के ग्राम हसलपुर से निकलकर करीब 70 किमी का सफर तय करने के बाद माचना नदी शाहपुर के आगे तवा नदी में मिलती हैं। इस 70 किमी के सफर में माचना नदी की सबसे ज्यादा दुर्गति बैतूल शहर की सीमा के अंदर ही होती है। जहां बैतूल के रहवासी अपनी इस नदी से प्यास तो बुझाते है लेकिन उन्होने कभी यह सोचने की परवाह तक नहीं की कि जिस नदी का पानी पी रहे है वह दरअसल में नाक मापदण्डो पर कितनी प्रतिशत शुद्ध हैं। बैतूल के 89 प्रतिशत टुयूबवेल फलोराइड वाला पानी ऊगल रहे है उसके बाद भी नगर पालिका द्वारा सप्लाई किया जाने वाला माचना नदी का पानी भी भी कम प्रदुषित नहीं हैं। नदी और नारी के प्रति संवेदनशील समाज के चलते आज माचना पूरी तरह से मैली ही नहीं जहरीली भी हो गई हैं। माचना नदी में एनीकेट के पहले एवं बाद लगातार माचना का मैलापन किसी से छुपा नहीं हैं। जिंदा तो दूर मरे हुए इंसान की अंतिम क्रपाल क्रिया में भी माचना का प्रदुषित जहरीला पानी उपयोग में लाया जा रहा हैं। माचना एनीकेट से लेकर परतवाड़ा रोड़ स्थित कर्बला तक पांच किमी के दायरे में माचना ने हरे रंग की काई से बुनी गई चादर ओढ़ रखी है हालाकि हर वर्ष माचना जन्मोउत्सव पर उसे लाल रंग की चुनर पहनाने का रिवाज हैं। अब तो माचना का पानी दिन प्रतिदिन सुखता जा रहा है जिसके चलते काई अब जमीन पर ही बिछौना बनती जा रही हैं। ऐसा होने से बीते तीन महिने से माचना नदी का जल प्रवाह थम सा गया है। हालत यह है कि इसका पानी मवेशी भी पीना पसंद नहीं करते हैं। माचना नदी में जाकर मिलने वाले शहर के हाथी नाले के माध्यम से शहर के घरों के गटर का पानी भी सीधे जाकर माचना में मिल रहा है। इसके अलावा माचना के किनारे बसे वार्डो से भी जो गंदा पानी है उसकी निकासी भी माचना नदी में ही की जाती है। कूड़ा-करकट भी माचना में ही समाहित होता है। जिस तरह मुलताई में ताप्ती जयंती, भैंसदेही में पूर्णा जयंती और शाहपुर में माचना जयंती मनाई जाती है उस तरह बैतूल में माचना को लेकर कोई जागरूकता आम नागरिकों में नहीं है उसके पीछे वजह यह है कि जो मैली हो चुकी है उसे पवित्र कैसी मानी जाए….? जलाभिषेक अभियान में नदियों के संरक्षण को लेकर बड़े-बड़े प्लान बनाए जा रहे हैं लेकिन जिला मुख्यालय पर मौजूद इस बड़ी नदी के संरक्षण और संवर्घन के लिए जिला प्रशासन के पास प्लान होना तो दूर की बात है कोई विचार तक नहीं है। एनीकेट से लेकर कर्बला तक माचना नदी के किनारे तीन श्मशान घाट है और तीनों ही घाटों पर शव जलाने के बाद निकलने वाली क्विंटलों राख माचना में ही प्रवाहित कर दी जाती है। इस राख की वजह से माचना का पानी सबसे ज्यादा प्रदूषित होता है और इसी राख की वजह से एनीकेट के बाद माचना के पानी का उपयोग अन्य दैनिक कार्यो में करने में लोग कतराते हैं। यह माचना की सबसे बड़ी विडंबना है कि आधे शहर की प्यास एनीकेट के माध्यम से बुझाने के बाद भी इसके पानी से ही यह बैतूल शहर परहेज करता है। वैसे माचना नदी नगरीय क्षेत्र की सीमा में आती है इसलिए इसकी साफ-सफाई और संरक्षण की जिम्मेदारी नगरपालिका की है।